Friday, April 17, 2015

Knee Care


FEVER: Temperature Management


WATER.. how..?? when..?? and how much..??



जल ही अमृत है

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आइये समझें कब, कैसे और कितना जल पीना है अमृत



जल ही जीवन है, हम सभी इस बात से वर्षों से परिचित हैं। पर प्रश्न यह है कि जल का सेवन कितना करें और कैसे करें...??? आज कल सर्वत्र हर कोई अपने-अपने तरीक़े से पानी पीने की सलाह दे रहा है। कोई कहता है प्रतिदिन ८ गिलास पानी पियो, तो कोई कहता है २० गिलास पानी पियो, कोई कहता है १ लीटर पानी काफी है, तो कोई ४ लीटर पानी पीने कि सलाह देता है। अब इन सब बातों का प्रभाव भी नज़र आने लगा है। यहाँ तक कि अब लोग घर से ही पीने के पानी की व्यवस्था कर के निकलते है। क्या इन सब बातों का कोई वैज्ञानिक आधार भी है...???

कितना पानी पियें :

हम सभी जानते है कि शरीर के कुल भार का ५५ से ७५ प्रतिशत भार पानी होता है। यानी औसतन ६५ किलोग्राम के व्यस्क पुरुष के शरीर में कम से कम ३६ किलोग्राम पानी अवश्य होना चाहिए। शरीर से स्वेद के रूप में, मल व मूत्र के रूप में, श्वसन प्रक्रिया में लगातार शारीरिक जल की हानि होती रहती है। सामान्यत: साधारण मौसम में प्रतिदिन एक व्यस्क पुरुष के शरीर से कम से कम १.५ लीटर जल निष्कासित होता है। परन्तु कभी-कभी मौसम, श्रम, उल्टी-दस्त, बहुमूत्रता या स्वेदाधिक्य जैसी परिस्थितियों में अति-शीघ्रता से शारीरिक जल की हानि होती है। इसी क्षति पूर्ती के लिए हमें जल कि निरन्तर आवश्यकता होती है। जब होने वाली क्षति से कम पानी ग्रहण किया जाता है, तो शरीर का निर्जलीकरण होने लगता है। और यदि क्षति से बहुत अधिक पानी पिया जाए तो रक्तवाहिकाओं में तरल-अधिभार होने की शंका रहती है। अत: जल-क्षति का आंकलन कर के ही पानी की मात्रा का निर्धारण करना चाहिए। ऐसे अनेक कारक हैं जो शरीर से होने वाली जल-क्षति को प्रभावित करते हैं, जैसे आयु, लिंग, भार, वातावरण, श्रम, दैहिक-स्वास्थ्य-स्तर व खाने-पीने की आदतें आदि।

छोटे बच्चों के शरीर में जल की मात्रा बहुत कम होती है, कम पानी ग्रहण करने कि स्थिति में बच्चों में तेज़ी से निर्जलीकरण होने की संभावना होती है दूसरी और बच्चों में थोड़ा पानी ग्रहण करके आसानी से ही आवश्यक जल स्तर पुनर्स्थापित हो जाता है। इसलिए छोटे बच्चों को बार-बार थोड़ा-थोड़ा जल पिलाते रहना चाहिए। वृद्धावस्था में बढती आयु के साथ शरीर में विजातीय तत्व बड़ने लगते हैं, जबकि शरीर की जल धारण करने की क्षमता घटने लगती है। प्यास के वेग सम्बन्धी संवेदना भी मंद पड़ जाती है। हृदय व वृक्क कमज़ोर होने से तरल-अधिभार को सहने की क्षमता भी कम हो जाती है। ऐसे में आवश्यक जल स्तर बनाये रखने के लिए इन्हें भी बार-बार थोड़ा-थोड़ा जल ग्रहण करते रहना चाहिए। इसके विपरीत युवावस्था में शरीर की जल धारण क्षमता व तरल-अधिभार सहन क्षमता दोनों उत्तम होतीं हैं। अत: युवा व्यक्ति इच्छानुसार जल ग्रहण कर सकते हैं। सामान्यत: पुरुषों को स्त्रियों की अपेक्षा अधिक जल ग्रहण करना चाहिए। किन्तु गर्भवती स्त्री को अपेक्षाकृत और भी अधिक जल की आवश्यकता होती है। मोटापाग्रस्त व भारी शरीर वाले लोगों को भी अपेक्षाकृत अधिक जल पीना चाहिए। मधुमेह, पथरी, रसोली, आन्त्रशोथ, प्रमेह (kidney diseases), ज्वर, रक्तपात, पीलिया, रक्त में अपशिष्ट पदार्थों जैसे यूरिया, sodium, potassium, creatinine, cholesterol का स्तर बढना, खून का गाड़ापन आदि परिस्थितियों में अधिक जल ग्रहण करना चाहिए। शारीरिक श्रम करने वाले मज़दूर, खिलाड़ी, धावक, बॉडी-बिल्डर, पहलवान आदि को सामान्य से २-३ गुणा अधिक जल की आवश्यकता होती है। पर्यावरण की चरम परिस्थितियों में विशेषकर गर्मी व नमी युक्त वातावरण में, तीव्र ठण्ड में, ऊंचे पहाड़ों में निर्जलीकरण होने की सम्भावना अधिक होती है, अत: अधिक पानी पीना चाहिए। इसके अतिरिक्त तला-पकवान, मसालेदार भोजन, शराब आदि तामसिक खान-पान करने से मूत्र की मात्रा व श्वास की गति बड़ने से तेज़ी से निर्जलीकरण होता है। अत: पानी की मात्रा बड़ा देनी चाहिए।

कब पियें पानी :

आमतोर पर निर्जलीकरण कि प्रारंभिक परिस्थितियों में ही तृषा की अनुभूति होने लगती है। प्यास का वेग उपस्थित होने पर इसकी अनदेखी न करें। तुरंत ही उपरोक्त परिस्थितियों के अनुसार यथोचित जल ग्रहण करें। बालक, वृद्ध व गर्भिणी बिना वेग के भी निश्चित अन्तराल पर थोड़ा-थोड़ा जल ग्रहण करते रहें।

कैसे पियें पानी :

तृषा का वेग उपस्थित होने पर सुख-पूर्वक बैठ कर, न बहुत अधिक गरम न अधिक ठण्डे जल का उचित मात्रा में सेवन करें। पानी तनावमुक्त होकर धीरे-धीरे घूँट-घूँट कर पियें, एक साथ तेज़ी से पानी को गटकें नहीं। एक-साथ अधिक मात्रा में पानी न पियें। अलग-अलग स्त्रोतों का पानी एक साथ नहीं पीना चाहिए अथवा एक प्रदेश का जल पचने से पूर्व दुसरे प्रदेश का जल नहीं पीना चाहिए। खड़े रह कर या लेट कर पानी न पियें। भोजन के पूर्व अथवा तुरंत बाद जल न पियें। खीरा, ककड़ी, खरबूजा, तरबूज आदि किसी भी फ़ल के सेवन के तुरंत बाद पानी न पियें। दूध, चाय, कॉफ़ी, हॉट-चाकलेट आदि ऊष्ण पेय पीनें के बाद पानी न पियें।

रोगी व्यक्ति दोष व औषध का विचार करके मत्रापूर्वक पक्व(उबाल के १/४ भाग शेष रहने पर ठण्डा किया हुआ जल), अपक्व(बिना उबले), ऊष्ण जल (गर्म पानी) अथवा सुखोष्ण जल(गुनगुना पानी) का सेवन करें। नवज्वर में बार-बार अल्प मात्रा में पक्व जल का, व अजीर्ण में प्यास न होने पर भी बार-बार अल्प मात्रा में सुखोष्ण जल के सेवन का विधान है। श्वास-कास का वेग शान्त होने पर अल्प मात्रा में पक्व जल ग्रहण करें। मोटे व्यक्ति भोजन से पूर्व व दुबले व्यक्ति भोजन के अन्त में जल पियें। मदात्यय, ग्लानी(nausea), छर्दी(vomiting), श्रम(fatigue), तृष्णा, ऊष्णदाह(burning sensation) आदि पित्तज व्याधियों में शीतल जल पीना उचित है। हिक्का(hicoughs), आध्यमान(bloating abdomen), कास-श्वास-पीनस(respiratory diseases), पाशर्वशूल(body pain), आमविष (de-toxification), मेदोरोग(obesity), नवज्वर(acute fever) में पक्व जल पीना श्रेष्ठ है। आक्षेपयुक्त (during fits), मूर्छित/बेहोश, सन्यासग्रस्त (coma) को जल न पिलायें।

डॉ कमल सेठी (निदेशक)
वैदिक्योर, द हॅालिस्टिक हेल्थ सेन्टर