Wednesday, April 29, 2015
Friday, April 17, 2015
WATER.. how..?? when..?? and how much..??
जल ही अमृत है
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आइये समझें कब, कैसे और कितना जल पीना है अमृत
जल ही जीवन है, हम सभी इस बात से वर्षों से परिचित हैं। पर प्रश्न यह है कि जल का सेवन कितना करें और कैसे करें...??? आज कल सर्वत्र हर कोई अपने-अपने तरीक़े से पानी पीने की सलाह दे रहा है। कोई कहता है प्रतिदिन ८ गिलास पानी पियो, तो कोई कहता है २० गिलास पानी पियो, कोई कहता है १ लीटर पानी काफी है, तो कोई ४ लीटर पानी पीने कि सलाह देता है। अब इन सब बातों का प्रभाव भी नज़र आने लगा है। यहाँ तक कि अब लोग घर से ही पीने के पानी की व्यवस्था कर के निकलते है। क्या इन सब बातों का कोई वैज्ञानिक आधार भी है...???
छोटे बच्चों के शरीर में जल की मात्रा बहुत कम होती है, कम पानी ग्रहण करने कि स्थिति में बच्चों में तेज़ी से निर्जलीकरण होने की संभावना होती है दूसरी और बच्चों में थोड़ा पानी ग्रहण करके आसानी से ही आवश्यक जल स्तर पुनर्स्थापित हो जाता है। इसलिए छोटे बच्चों को बार-बार थोड़ा-थोड़ा जल पिलाते रहना चाहिए। वृद्धावस्था में बढती आयु के साथ शरीर में विजातीय तत्व बड़ने लगते हैं, जबकि शरीर की जल धारण करने की क्षमता घटने लगती है। प्यास के वेग सम्बन्धी संवेदना भी मंद पड़ जाती है। हृदय व वृक्क कमज़ोर होने से तरल-अधिभार को सहने की क्षमता भी कम हो जाती है। ऐसे में आवश्यक जल स्तर बनाये रखने के लिए इन्हें भी बार-बार थोड़ा-थोड़ा जल ग्रहण करते रहना चाहिए। इसके विपरीत युवावस्था में शरीर की जल धारण क्षमता व तरल-अधिभार सहन क्षमता दोनों उत्तम होतीं हैं। अत: युवा व्यक्ति इच्छानुसार जल ग्रहण कर सकते हैं। सामान्यत: पुरुषों को स्त्रियों की अपेक्षा अधिक जल ग्रहण करना चाहिए। किन्तु गर्भवती स्त्री को अपेक्षाकृत और भी अधिक जल की आवश्यकता होती है। मोटापाग्रस्त व भारी शरीर वाले लोगों को भी अपेक्षाकृत अधिक जल पीना चाहिए। मधुमेह, पथरी, रसोली, आन्त्रशोथ, प्रमेह (kidney diseases), ज्वर, रक्तपात, पीलिया, रक्त में अपशिष्ट पदार्थों जैसे यूरिया, sodium, potassium, creatinine, cholesterol का स्तर बढना, खून का गाड़ापन आदि परिस्थितियों में अधिक जल ग्रहण करना चाहिए। शारीरिक श्रम करने वाले मज़दूर, खिलाड़ी, धावक, बॉडी-बिल्डर, पहलवान आदि को सामान्य से २-३ गुणा अधिक जल की आवश्यकता होती है। पर्यावरण की चरम परिस्थितियों में विशेषकर गर्मी व नमी युक्त वातावरण में, तीव्र ठण्ड में, ऊंचे पहाड़ों में निर्जलीकरण होने की सम्भावना अधिक होती है, अत: अधिक पानी पीना चाहिए। इसके अतिरिक्त तला-पकवान, मसालेदार भोजन, शराब आदि तामसिक खान-पान करने से मूत्र की मात्रा व श्वास की गति बड़ने से तेज़ी से निर्जलीकरण होता है। अत: पानी की मात्रा बड़ा देनी चाहिए।
रोगी व्यक्ति दोष व औषध का विचार करके मत्रापूर्वक पक्व(उबाल के १/४ भाग शेष रहने पर ठण्डा किया हुआ जल), अपक्व(बिना उबले), ऊष्ण जल (गर्म पानी) अथवा सुखोष्ण जल(गुनगुना पानी) का सेवन करें। नवज्वर में बार-बार अल्प मात्रा में पक्व जल का, व अजीर्ण में प्यास न होने पर भी बार-बार अल्प मात्रा में सुखोष्ण जल के सेवन का विधान है। श्वास-कास का वेग शान्त होने पर अल्प मात्रा में पक्व जल ग्रहण करें। मोटे व्यक्ति भोजन से पूर्व व दुबले व्यक्ति भोजन के अन्त में जल पियें। मदात्यय, ग्लानी(nausea), छर्दी(vomiting), श्रम(fatigue), तृष्णा, ऊष्णदाह(burning sensation) आदि पित्तज व्याधियों में शीतल जल पीना उचित है। हिक्का(hicoughs), आध्यमान(bloating abdomen), कास-श्वास-पीनस(respiratory diseases), पाशर्वशूल(body pain), आमविष (de-toxification), मेदोरोग(obesity), नवज्वर(acute fever) में पक्व जल पीना श्रेष्ठ है। आक्षेपयुक्त (during fits), मूर्छित/बेहोश, सन्यासग्रस्त (coma) को जल न पिलायें।
डॉ कमल सेठी (निदेशक)
वैदिक्योर, द हॅालिस्टिक हेल्थ सेन्टर
कितना पानी पियें :
हम सभी जानते है कि शरीर के कुल भार का ५५ से ७५ प्रतिशत भार पानी होता है। यानी औसतन ६५ किलोग्राम के व्यस्क पुरुष के शरीर में कम से कम ३६ किलोग्राम पानी अवश्य होना चाहिए। शरीर से स्वेद के रूप में, मल व मूत्र के रूप में, श्वसन प्रक्रिया में लगातार शारीरिक जल की हानि होती रहती है। सामान्यत: साधारण मौसम में प्रतिदिन एक व्यस्क पुरुष के शरीर से कम से कम १.५ लीटर जल निष्कासित होता है। परन्तु कभी-कभी मौसम, श्रम, उल्टी-दस्त, बहुमूत्रता या स्वेदाधिक्य जैसी परिस्थितियों में अति-शीघ्रता से शारीरिक जल की हानि होती है। इसी क्षति पूर्ती के लिए हमें जल कि निरन्तर आवश्यकता होती है। जब होने वाली क्षति से कम पानी ग्रहण किया जाता है, तो शरीर का निर्जलीकरण होने लगता है। और यदि क्षति से बहुत अधिक पानी पिया जाए तो रक्तवाहिकाओं में तरल-अधिभार होने की शंका रहती है। अत: जल-क्षति का आंकलन कर के ही पानी की मात्रा का निर्धारण करना चाहिए। ऐसे अनेक कारक हैं जो शरीर से होने वाली जल-क्षति को प्रभावित करते हैं, जैसे आयु, लिंग, भार, वातावरण, श्रम, दैहिक-स्वास्थ्य-स्तर व खाने-पीने की आदतें आदि।छोटे बच्चों के शरीर में जल की मात्रा बहुत कम होती है, कम पानी ग्रहण करने कि स्थिति में बच्चों में तेज़ी से निर्जलीकरण होने की संभावना होती है दूसरी और बच्चों में थोड़ा पानी ग्रहण करके आसानी से ही आवश्यक जल स्तर पुनर्स्थापित हो जाता है। इसलिए छोटे बच्चों को बार-बार थोड़ा-थोड़ा जल पिलाते रहना चाहिए। वृद्धावस्था में बढती आयु के साथ शरीर में विजातीय तत्व बड़ने लगते हैं, जबकि शरीर की जल धारण करने की क्षमता घटने लगती है। प्यास के वेग सम्बन्धी संवेदना भी मंद पड़ जाती है। हृदय व वृक्क कमज़ोर होने से तरल-अधिभार को सहने की क्षमता भी कम हो जाती है। ऐसे में आवश्यक जल स्तर बनाये रखने के लिए इन्हें भी बार-बार थोड़ा-थोड़ा जल ग्रहण करते रहना चाहिए। इसके विपरीत युवावस्था में शरीर की जल धारण क्षमता व तरल-अधिभार सहन क्षमता दोनों उत्तम होतीं हैं। अत: युवा व्यक्ति इच्छानुसार जल ग्रहण कर सकते हैं। सामान्यत: पुरुषों को स्त्रियों की अपेक्षा अधिक जल ग्रहण करना चाहिए। किन्तु गर्भवती स्त्री को अपेक्षाकृत और भी अधिक जल की आवश्यकता होती है। मोटापाग्रस्त व भारी शरीर वाले लोगों को भी अपेक्षाकृत अधिक जल पीना चाहिए। मधुमेह, पथरी, रसोली, आन्त्रशोथ, प्रमेह (kidney diseases), ज्वर, रक्तपात, पीलिया, रक्त में अपशिष्ट पदार्थों जैसे यूरिया, sodium, potassium, creatinine, cholesterol का स्तर बढना, खून का गाड़ापन आदि परिस्थितियों में अधिक जल ग्रहण करना चाहिए। शारीरिक श्रम करने वाले मज़दूर, खिलाड़ी, धावक, बॉडी-बिल्डर, पहलवान आदि को सामान्य से २-३ गुणा अधिक जल की आवश्यकता होती है। पर्यावरण की चरम परिस्थितियों में विशेषकर गर्मी व नमी युक्त वातावरण में, तीव्र ठण्ड में, ऊंचे पहाड़ों में निर्जलीकरण होने की सम्भावना अधिक होती है, अत: अधिक पानी पीना चाहिए। इसके अतिरिक्त तला-पकवान, मसालेदार भोजन, शराब आदि तामसिक खान-पान करने से मूत्र की मात्रा व श्वास की गति बड़ने से तेज़ी से निर्जलीकरण होता है। अत: पानी की मात्रा बड़ा देनी चाहिए।
कब पियें पानी :
आमतोर पर निर्जलीकरण कि प्रारंभिक परिस्थितियों में ही तृषा की अनुभूति होने लगती है। प्यास का वेग उपस्थित होने पर इसकी अनदेखी न करें। तुरंत ही उपरोक्त परिस्थितियों के अनुसार यथोचित जल ग्रहण करें। बालक, वृद्ध व गर्भिणी बिना वेग के भी निश्चित अन्तराल पर थोड़ा-थोड़ा जल ग्रहण करते रहें।कैसे पियें पानी :
तृषा का वेग उपस्थित होने पर सुख-पूर्वक बैठ कर, न बहुत अधिक गरम न अधिक ठण्डे जल का उचित मात्रा में सेवन करें। पानी तनावमुक्त होकर धीरे-धीरे घूँट-घूँट कर पियें, एक साथ तेज़ी से पानी को गटकें नहीं। एक-साथ अधिक मात्रा में पानी न पियें। अलग-अलग स्त्रोतों का पानी एक साथ नहीं पीना चाहिए अथवा एक प्रदेश का जल पचने से पूर्व दुसरे प्रदेश का जल नहीं पीना चाहिए। खड़े रह कर या लेट कर पानी न पियें। भोजन के पूर्व अथवा तुरंत बाद जल न पियें। खीरा, ककड़ी, खरबूजा, तरबूज आदि किसी भी फ़ल के सेवन के तुरंत बाद पानी न पियें। दूध, चाय, कॉफ़ी, हॉट-चाकलेट आदि ऊष्ण पेय पीनें के बाद पानी न पियें।रोगी व्यक्ति दोष व औषध का विचार करके मत्रापूर्वक पक्व(उबाल के १/४ भाग शेष रहने पर ठण्डा किया हुआ जल), अपक्व(बिना उबले), ऊष्ण जल (गर्म पानी) अथवा सुखोष्ण जल(गुनगुना पानी) का सेवन करें। नवज्वर में बार-बार अल्प मात्रा में पक्व जल का, व अजीर्ण में प्यास न होने पर भी बार-बार अल्प मात्रा में सुखोष्ण जल के सेवन का विधान है। श्वास-कास का वेग शान्त होने पर अल्प मात्रा में पक्व जल ग्रहण करें। मोटे व्यक्ति भोजन से पूर्व व दुबले व्यक्ति भोजन के अन्त में जल पियें। मदात्यय, ग्लानी(nausea), छर्दी(vomiting), श्रम(fatigue), तृष्णा, ऊष्णदाह(burning sensation) आदि पित्तज व्याधियों में शीतल जल पीना उचित है। हिक्का(hicoughs), आध्यमान(bloating abdomen), कास-श्वास-पीनस(respiratory diseases), पाशर्वशूल(body pain), आमविष (de-toxification), मेदोरोग(obesity), नवज्वर(acute fever) में पक्व जल पीना श्रेष्ठ है। आक्षेपयुक्त (during fits), मूर्छित/बेहोश, सन्यासग्रस्त (coma) को जल न पिलायें।
डॉ कमल सेठी (निदेशक)
वैदिक्योर, द हॅालिस्टिक हेल्थ सेन्टर
Friday, April 10, 2015
Tobacco : A Poison... Quit Today!!!
तम्बाकू : एक ज़हर... आज ही छोड़िये!!!
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पर कैसे..??? आइये जानते हैं कैसे....
१. जानिए आप तम्बाकू क्यूँ छोड़ना कहते हैं?
तम्बाकू छोड़ना चाहते हैं, पर क्यूँ...??
क. मालूम नहीं...
ख. सब कहते हैं छोड़ दो, इसलिए...
ग. तम्बाकू सेवन एक बुरी आदत है, इसलिए...
नहीं, ये कारण तम्बाकू की तीव्र इच्छा को रोक पाने के लिए अपर्याप्त हैं| तम्बाकू छोड़ने के लिए प्रगाढ़ एवं पर्याप्त कारण हैं, जिन्हें जानलेना बहुत आवश्यक है, तम्बाकू के सेवन से कैंसर होने का खतरा 50 गुणा बड़ जाता है और तम्बाकू सेवन करने वाले के आस-पास के लोग भी निश्चेष्ठ ही तम्बाकू के दुष्प्रभावों की चपेट में आ जाते हैं|
२. तम्बाकू त्यागने के लाभ
सेहत पर तम्बाकू छोड़ने के प्रभाव बहुत शीघ्र दिखाई देते हैं| अंतिम धूम्रपान के 20 मिनट में बड़ा हुआ ब्लड-प्रेशर व हृदय गति सामान्य होने लगती है| 1 दिन के अन्दर रक्त में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर सामान्य हो जाता है| 2 सप्ताह में हृदयाघात होने की सम्भावना 50% कम हो जाती है| 1 वर्ष में फुफुस-कैंसर की सम्भावना 30% तक कम हो जाती है|
३. धीरे-धीरे नहीं, तत्काल छोड़िये
लगभग 90% लोग जो धीरे-धीरे तम्बाकू छोड़ने का प्रयास करते हैं, सफ़ल नहीं हो पाते| इसके विपरीत तम्बाकू का तत्काल पूर्ण रूप से त्याग करने वाले 80% लोग सफ़ल होते हैं| यद्यपि तम्बाकू छोड़ने के दुष्प्रभाव बहुत कम और क्षीण होते हैं इसलिए इसे पादांशिक-क्रम से (धीरे-धीरे) छोड़ने की आवश्यकता नहीं होती, फिर भी यदि लक्षण उपस्थित हों तो चिकित्सीय सहायता ली जा सकती है|
४. सहयोग लें
तम्बाकू छोड़ना अपराध नहीं है, अपने मित्रों, परिजनों, सहकर्मियों को बताएं कि आप तम्बाकू छोड़ने का प्रयास कर रहे हैं| इनसे सहयोग की अपेक्षा रखें| ये आपके मनोबल को बढाने में सहायक होंगे| इसके अतिरिक्त किसी पेशेवर सलाहकार से भी सहयोग लिया जा सकता है| मनोचिकित्सक से भी परामर्श ले सकते हैं|
५. मना करना सीखें
यदि कोई मित्र अथवा मिलने-जुलने वाला जानबूझ कर आपको तम्बाकू सेवन के लिए उकसाता है तो उसे तुरंत मना करना सीखें| ऐसे लोगों की संगति से बचें|
६. तनाव प्रबन्धन
आमतोर पर लोग मानसिक तनाव को कम करने के लिए तम्बाकू का सेवन करते हैं| ऐसे में तनाव कम करने के अन्य तरीक़े अपनाना आवश्यक है| योगा, ध्यान लगाना, मसाज, मनभावन-संगीत, पसंदीदा फ़िल्म देखना आदि उपयोगी हो सकते हैं| संभव हो तो तम्बाकू त्यागने के प्रारंभिक सप्ताहों में तनाव पूर्ण स्थितियों से बचने का प्रयास करें|
७. मिटा दें तम्बाकू के निशान
अब जब आपने तम्बाकू छोड़ने का निर्णय कर लिया है तो तम्बाकू सेवन से जुड़ीं चीजों को भी त्याग दें| कपड़े, बिस्तर, ग़लीचे जिनमें भी तम्बाकू कि गंध हो उन्हें धुलवाएँ| हुक्का, पाइप, पान-पेटी, पीकदान, ऐश-ट्रे आदि घर से निकाल बहार करें| घर की दीवारें, वाश-बेसिन, कमोड आदि से पीक के निशान साफ़ करवाएं| अच्छे दन्त चिकित्सक से दांत साफ़ करवायें| ऐसी कोई भी वस्तू अपने निकट न रखें जिससे तम्बाकू सेवन की प्रवृति उत्पन्न हो|
८. निरन्तर प्रयासरत रहें
प्रारम्भ में तम्बाकू सेवन की पुनरावृति होना सामान्य है, पूर्ण रूप से तम्बाकू त्यागने के लिए निरंतर प्रयासरत रहना आवश्यक है| हर बार तम्बाकू सेवन कि पुनरावृति होने के कारणों एवं परिस्थितियों को समझ कर दूर करें, व अगले माह से पुन: तम्बाकू त्यागने का प्रयास करें|
९. व्यायाम करें
शारीरिक व्यायाम तम्बाकू सेवन की तीव्र इच्छा को कम करने में सहायक है, व्यायाम करने से मनोबल भी बड़ता है|
१०. सात्विक भोजन करें
फ़ल, कच्ची सब्ज़ियाँ व स्वच्छ शाकाहारी भोजन सात्विक गुणों से परिपूर्ण हैं, इनके निरंतर सेवन से तामसिक वृतियों का नाश होता है| प्राय: देखा गया है कि, सात्विक भोजन पर निर्भर लोगे अपेक्षाकृत आसानी से तम्बाकू जैसे तामसिक व्यसन का त्याग कर पाते हैं| इसके विपरीत तामसिक वस्तुएं जैसे अंडा, मांस, शराब आदि का सेवन करने वाले लोग आसानी से तम्बाकू नहीं छोड़ पाते|
११. आयुर्वेदिक धूमवर्ती
धुम्रपान कि प्रबल इच्छा हो तो तम्बाकू वाली बीड़ी या सिगरेट के स्थान पर आयुर्वेदिक गुणों वाली धूमवर्ती प्रयोग कर सकते है| यह बाज़ार में आपके नज़दीकी आयुर्वेदिक स्टोर पर उपलब्ध होती है| आप चाहें तो इसे घर में भी बना सकते हैं|
(धूमवर्ती बनाने की विधि : तुलसी पत्र, लौंग, मुलेठी, हल्दी, दालचीनी, इलाइची दाना प्रत्येक ५ ग्राम छायाँ में सुखा कर यवकुट कर लें| किसी चौड़े बर्तन में १ चम्मच शहद, ४ चम्मच पानी घोलें, इसमें उपरोक्त सभी द्रव्य मिला कर छायाँ में पुन: सुखाएं| सूखने पर तेंदू पत्र में लपेट लें| आयुर्वेदिक धूमवर्ती तैयार है|)
१२. सुगन्धित मुखवास
गुटखा, पानमसाला आदि सुगन्धित तम्बाकू उत्पाद का व्यसन करने वाले लोग आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर सुगन्धित मुखवास प्रतिस्थापित करें| आप बाज़ार से सुपारी रहित मुखवास ले सकते है या घर में भी बना सकते हैं|
(मुखवास बनाने की विधि : ६० ग्राम सौंफ़, ३० ग्राम धनिया दाल, ३० ग्राम सफेत तिल अलग-अलग मंद आंच पर भूनिये, तीनों को एक बड़े बर्तन में मिला कर २ चम्मच गुलकंद व १/४ चम्मच पोदीना-टिक्की पाउडर मिला लीजिये| स्वादानुसार मिश्री क्रिस्टल व टूटी-फ्रूटी मिलाइए| साफ़ काँच के एयर-टाइट जार में सुरक्षित रखें| आयुर्वेदिक गुणकारी मुखवास तैयार है|)
१३. खट्टा-मीठा अदरक-लच्छा
खैनी आदि तम्बाकू उत्पाद मुख में रखने के अभ्यस्त लोग, खैनी के स्थान पर खट्टा-मीठा अदरक-लच्छा मुह में रख सकते है| यह खैनी के सामान हल्का तीखा होता है, व देर तक मुह में बना रहता है| यह भी बाज़ार में उपलब्ध है, अथवा आप इसे भी घर पर बना सकते है|
(खट्टा-मीठा अदरक-लच्छा बनाने की विधि : १०० ग्राम अदरक धो कर पतले-पतले व १ इंच लम्बे टुकड़े काट कर १०-१२ पोदीने के पत्तों के साथ ५० मिलीलीटर नीम्बू के रस में भिगोयें व छायाँ में सूखने के लिए छोड़ दें| ३ ग्राम भुना जीरा पाउडर, २ ग्राम अजवायन पाउडर, ५ ग्राम सेंधानमक व २० ग्राम मिश्री या चीनी आपस में मिला कर बारीक चूर्ण कर लें| अदरक के टुकड़े अल्प-शुष्क (Semidry) होने पर बारीक चूर्ण मिला कर पूरी तरह सुखा लें व कांच की शीशी में सुरक्षित रख लें| आवश्यकतानुसार १-२ टुकड़े चूस के खाएँ|)
डॉ कमल सेठी(निदेशक)
वैदिक्योर, द हॉलिस्टिक हेल्थ सेन्टर
Sunday, April 5, 2015
LIPID PROFILE : ELEVATED CHOLESTEROL..??? AN ALARMING BELL!!!
बढता कोलेस्ट्रॉल – ख़तरे की घंटी
कैसे करें रोकथाम
क्या
आपकी लिपिड प्रोफाइल बता रही है कि आपका कोलेस्ट्रॉल सामान्य स्तर से अधिक है? अगर
हाँ! तो आज से ही अपना खान-पान और जीवनशैली बदलिए, यह हृदय के लिए ख़तरे की घंटी
है| भले ही आपके चिकित्सक आपको रक्त-वसा घटाने कि दवा दे रहें हों, फिर भी आपके
हृदय को सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए चाहिए संतुलित खान-पान और चुस्त जीवनशैली|
दिनचर्या में थोड़ा सा बदलाव बड़ते कोलेस्ट्रॉल के ख़तरे से निज़ात दिला सकता है|
क्या होता है कोलेस्ट्रॉल..???
यह
रक्त में उपस्थित घना चिपचिपा वसीय पदार्थ होता है जिसका निर्माण भोजन में उपस्थित
घी-तेल जैसे चिकने पदार्थों से मुख्य रूप से हमारे लिवर सेल्स में होता है| इसके
आलावा डेयरी उत्पाद, अंडे व मीट आदि में भी बड़ी मात्रा में कोलेस्ट्रॉल पाया जाता
है|
शरीर में कोलेस्ट्रॉल का क्या काम है..???
कोलेस्ट्रॉल
कि मदद से कोशिका भित्तियाँ अनेक होर्मोनेस जैसे टेस्टॉसटिरोन आदि का निर्माण
करतीं हैं, इसके अतिरिक्त अस्थि व सन्धियों के लिए उपयोगी विटामिन D का निर्माण भी
कोलेस्ट्रॉल से होता है| भोजन के पाचन में उपयोगी bile के निर्माण के लिए भी
कोलेस्ट्रॉल आवश्यक है|
तो कोलेस्ट्रॉल अच्छा है या बुरा..???
शरीर
के सुचारू रूप से काम करने के लिए कोलेस्ट्रॉल की बहुत ही सीमित मात्रा चाहिए,
किन्तु खान-पान में मोजूद चिकनाई रक्त में, आवश्यकता से कई गुणा अधिक कोलेस्ट्रॉल
बड़ा देती है| ये गाड़ा चिपचिपा पदार्थ रक्त-नालियों में जमा होकर रक्त-प्रवाह को
रोकने लगता है तो हृदय रोग की सम्भावना कई गुणा बड जाती है|
ये HDL और LDL क्या हैं..???
रक्त
में उपस्थित proteins,
रक्त-वसा से मिल कर lipoproteins बनाते
हैं | यदि रक्त-वसा में proteins कि
मात्रा अधिक होती है तो इसे HDL यानि High Density Lipid कहते हैं| यह
रक्तवाहिकाओं में जमता नहीं है, इसलिए इससे Good-Cholesterol भी कहते हैं| इसके
विपरीत LDL यानि Low Density Lipid में proteins कि
मात्रा कम होती है और यह आसानी से रक्तवाहिकाओं में जम कर इन्हें अवरुद्ध कर देता
है, इस लिए इसे Bad-Cholesterol भी कहेते हैं| vLDL यानि very Low Density Lipid
भी LDL कि तरह Bad-cholesterol कि श्रेणी में आता है| इस में भी proteins कि मात्रा बहुत कम होती है| इसके अतिरिक्त Triglycerides
अलग प्रकार कि वसा है| रक्त में vLDL के द्वारा इसका वहन होता है| शरीर में
पहुँचने वाली अतिरिक्त ऊर्जा व चर्बी Triglycerides के रूप में वसा कोशिकाओं में
संचित होती है|
हृदय रोग के अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल से और क्या-क्या रोग हो सकते हैं..???
कोलेस्ट्रॉल रक्त-वाहिकाओं में
जम कर रक्त-प्रवाह को अवरुद्ध करता है| आम तोर पर जिस अंग से सम्बंधित
रक्त-वाहिकाएँ ज्यादा अवरुद्ध होतीं हैं, उसी अंग से सम्बंधित लक्षण पहले दिखाई
देते है| चूँकि हृदय और मस्तिष्क मार्मिक अंग हैं, इसलिए इनमें उपस्थित लक्षण सर्वाधिक
चिंताजनक होते है| कोलेस्ट्रॉल कि अधिकता से होने वाले मुख्य रोग हैं:-
- हृदयाघात (Coronary Heart Disease – CHD)
- मस्तिष्काघात (Stroke)
- परिधीय सम्वाहिनियाघात (Peripheral Vascular Disease)
- उच्च रक्त-चाप (Hypertension/Blood-Pressure)
- मधुमेह (Type-2 Diabetes)
रक्त में कोलेस्ट्रॉल किन कारणों से बड़ता है..???
रक्त
में कोलेस्ट्रॉल कि मात्रा बड़ने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:-
- अध्यशन : आवश्यकता से अधिक खान-पान, विशेष रूप से saturated fats से भरपूर भोजन का नित्य सेवन|
- श्रमाभाव : शारीरिक श्रम न करना|
- सुखासन : सदैव सुख पूर्वक बैठे रहेना|
- दिवास्वप्न : दिन में सोना|
- स्थौल्य : मोटे लोगों की रक्त-वाहिकाओं में कोलेस्ट्रॉल संचय की सम्भावना पतले लोगों की अपेक्षा अधिक होती है|
- वय एवं लिंग : आमतोर पर पुरुषों में स्त्रियों कि अपेक्षा अधिक कोलेस्ट्रॉल पाया जाता है| स्त्रियों में राजोरोध के बाद अपेक्षाकृत तेज़ी से कोलेस्ट्रॉल बड़ता है|
- मधुमेह : मधुमेहियों में कोलेस्ट्रॉल संचय कि सम्भावना २ गुणा अधिक होती है|
- अनुवांशिक कारण : रक्त-वाहिकाओं में कोलेस्ट्रॉल संचय की प्रवृति अनुवांशिक हो सकती है| जिनके माता-पिता अथवा भाई-बहन को कोलेस्ट्रॉल की समस्या हैं, उनमें भी इस समस्या की सम्भावना बनी रहती है|
- अन्य कारण : चयापचय सम्बन्धी रोग जैसे हाइपोथायराइडिज्म व स्टेरॉयड आधारित दवाओं का निरंतर सेवन रक्त-वाहिकाओं में कोलेस्ट्रॉल संचय की सम्भावनाएँ बड़ा देते हैं|
कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए क्या करना चाहिए..???
- खान-पान में नियंत्रण
- नियमित व्यायाम
- समय पर दवाओं का सेवन करें|
खान-पान को कैसे नियंत्रित
करें..???
१. भोजन का चुनाव:
- रंगीन खायें: भोजन में रंगों का बहुत महत्व है| रंग-बिरंगे फल व सब्ज़ियाँ विटामिनों व एन्टीओक्सिडेन्ट्स से भरपूर होते हैं, इनमें कोलेस्ट्रॉल को कम करने कि अदभुद क्षमता होती है| सफ़ेद, काला व भूरा भोजन यथा संभव न खाएँ|
- रसीला खाएँ: रसीले फल विशेष रूप से मौसम्बी, अनार, अंगूर, संतरा आदि कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक होते है|
- तरल खाएँ तैलीय नहीं: सूखी सब्जी के स्थान पर तरी वाली सब्जी खायें| सब्जी बनाते समय कम चिकनाई प्रयोग करें व भोजन कढ़ाही आदि खुले बर्तन के स्थान पर कुकर आदि में ढक कर पकाएं| तला हुआ भोजन त्याग दें|
२. भोजन की मात्रा व विधि:
- भोजन छोटे-छोटे बर्तनों में परोस कर खाना चाहिये|
- खाने के लिए छोटी चम्मच का प्रयोग करें|
- भोजन चबा-चबा कर खायें व धीरे-धीरे खाएँ|
- भोजन खाते समय बीच-बीच में १-१ घूँट पानी पीते रहे|
- भूख से कम भोजन करें|
- समय पर भोजन करें, पूर्व में किये भोजन के पचने से पूर्व पुनः भोजन न करें|
व्यायाम का चुनाव कैसे करें..???
व्यायाम से अभिप्राय केवल जिम (GYM) जा कर भारी-भरकम मशीनों
द्वारा कसरत करना नहीं है, आप अपने लिए सरल व्यायाम चुन सकते हैं| ऐसे रुचिपूर्ण
क्रियाकलाप जो आपको आनंद से भर देते हों, सर्वोत्तम विकल्प हैं| ये कुछ भी हो सकते
हैं, जैसे भागना-दोड़ना, खेल-कूद, नृत्य, तैराकी, योगा, घूमना आदि| जिस क्रिया से
हृदय एवं श्वास गति कुछ अन्तराल के लिए बड़े, वह व्यायाम है|
व्यायाम कब और कितना करें..???
सप्ताह में कम से कम ५ दिन व्यायाम अवश्य करें| यदि
आप व्यायाम के अभ्यस्त नहीं हैं तो प्रारंभ में प्रतिदिन अत्यल्प (मात्र १० मिनट)
व्यायाम ही करें| अभ्यस्त होने पर उत्तरोतर व्यायाम कि मात्रा में वृद्धि करते हुए
प्रतिदिन ३० मिनट व्यायाम का अभ्यास करें| तत्पश्चात अपने दैनिक अभ्यास के साथ
सप्ताह में २ दिन सुदृढ़ीकरण व्यायाम जैसे भार-ढोना (Weight Lifting), दण्ड-पेलना
(Push-ups), उठक-बैठक (Squats), मुक्केबाज़ी,
तलवारबाज़ी, योगासन आदि व्यायाम भी करें, इनसे कोलेस्ट्रॉल व रक्त-शर्करा कम करने
में सहायता मिलती है व मांसपेशियाँ मज़बूत होती हैं|
क्या वज़न घटाना हितकर है..???
निश्चित
ही वज़न घटने से कोलेस्ट्रॉल भी कम होता है, वज़न घटने के साथ साथ व्यायाम करना भी
अधिक सुगम होता जाता है| हल्के लोग ज्यादा प्रभावी ढंग से Cardiorespiratory
exercises / Aerobics कर सकते हैं|
कोलेस्ट्रॉल कम करने में दवा की क्या भूमिका है..???
आपका
चिकित्सक यह बेहतर ढंग से निर्धारित करता है कि आपको दवा की कितनी आवश्यकता है|
कृपया चिकित्सक से परामर्श किये बिना दवा का स्वतः सेवन न करें|
कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली घरेलू औषधियाँ क्या हैं..???
- सुबह खाली पेट १ गिलास गुनगुने पानी में १ चम्मच नींबू का रस व १ चम्मच शहद मिला कर पियें|
- प्रतिदिन प्रातकाल ५ कलि लहसुन मंद आंच पे भून कर गुनगुने पानी से लें|
- प्रतिदिन भोजन के साथ जीरा १ ग्राम, हिंग ०.५ ग्राम तवे पर भून लें | १ गिलास ताज़ा छाछ में हल्का नमक मिला कर पियें |
- प्रतिदिन भोजन के साथ चंगेरी-हरीमिर्च अथवा पोदीने-धनिये-कच्चीअम्बी या कचरी-हरीमिर्च अथवा मेथीदाना-सौंफ़-कलोंजी-अमचूर-हरीमिर्च की चटनी प्रयोग करें|
- भोजन के अंत में अनारदाना अथवा अदरक की खट्टी-मिट्ठी गोलियों का सेवन करें|
- सप्ताह में ३ दिन घिये अथवा करेले का जूस पियें|
- भोजन में साधारण सिरके के स्थान पर एप्पल-सीडर-विनेगर का प्रयोग करें|
नमक का प्रयोग कम कर दें|
अधिक जानकारी के लिए
चिकित्सक से संपर्क करें|
डॉ कमल सेठी (निदेशक)
वैदिक्योर, द हाँलिस्टिक हेल्थ सेंटर
Friday, April 3, 2015
Type-2 Diabetes and Exercise... The Beginner's Guide
यदि आप टाइप-२ डायबिटीज से
ग्रसित हैं और आप व्यायाम प्रारंभ करने कि इच्छा रखते हैं तो कृपया निम्नलिखित
बातों पर अवश्य ध्यान दें|
- व्यायाम से अभिप्राय केवल जिम (GYM) जा कर भारी-भरकम मशीनों द्वारा कसरत करना नहीं है, आप अपने लिए सरल व्यायाम चुन सकते हैं| ऐसे रुचिपूर्ण क्रियाकलाप जो आपको आनंद से भर देते हों, सर्वोत्तम विकल्प हैं| ये कुछ भी हो सकते हैं, जैसे भागना-दोड़ना, खेल-कूद, नृत्य, तैराकी, योगा, घूमना आदि| जिस क्रिया से हृदय एवं श्वास गति कुछ अन्तराल के लिए बड़े, वह व्यायाम है|
- व्यायाम प्रारंभ करने से पूर्व अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य करें| आप क्या करना चाहते हैं, अपने चिकित्सक को अवश्य बताएं, व जाने कि अपका चुनाव आपके शरीर के अनुकूल है या नहीं| आपका चिकित्सक आपको व्यायाम का चुनाव करने, व्यायाम कि मात्रा एवं व्यायाम का समय निर्धारित करने में सहायता कर सकता है|
- व्यायाम प्ररम्भ करने से पूर्व रक्त-शर्करा स्तर की जांच करें| यदि आप १ घंटा या इससे अधिक व्यायाम करना चाहते हैं तो व्यायाम के मध्य व अन्त में भी रक्त-शर्करा स्तर की जाँच अवश्य करें| यदि आवश्यकता हो तो हल्का नाश्ता, जैसे केला, फल या जूस लें|
- हल्का नाश्ता, जैसे बिस्कुट, केला, फल या जूस सदैव अपने साथ रखें, रक्त-शर्करा स्तर गिरने जैसी आपात स्थिति में ये हलके खाद्य जीवन रक्षक होते हैं|
- अपने साथ पर्याप्त पीने योग्य जल भी अवश्य रखें, व्यायाम से पूर्व, मध्य व अंत में उचित मात्रा में जल का पान करें|
- कभी भी अकेले व्यायाम न करें| अपने लिए ऐसा सहयोगी चुने जो आपके हृदय के निकट हो, जिसकी संगत आपको प्रसन्ता व स्फूर्ति दे, जो आपके मधुमेह ग्रसित होने के विषय में जानता हो तथा यह भी जानता हो कि रक्त-शर्करा स्तर गिरने जैसी आपात स्थिति में क्या करना है|
- यदि आप व्यायाम के अभ्यस्त नहीं हैं तो प्रारंभ में अत्यल्प (मात्र १० मिनट) व्यायाम ही करें| अभ्यस्त होने पर उत्तरोतर व्यायाम कि मात्रा में वृद्धि करते हुए प्रतिदिन ३० मिनट व्यायाम का अभ्यास करें|
- तत्पश्चात अपने दैनिक अभ्यास के साथ सप्ताह में २ दिन सुदृढ़ीकरण व्यायाम जैसे भार-ढोना (Weight Lifting), दण्ड-पेलना (Push-ups), उठक-बैठक (Squats), मुक्केबाज़ी, तलवारबाज़ी, योगासन आदि व्यायाम भी करें, इनसे रक्त-शर्करा संतुलन में सहायता मिलती है व मांसपेशियाँ मज़बूत होती हैं|
- व्यायाम, भोजन व दवा का प्रतिदिन पूरी सावधानी से सेवन करें, व एक दिन भी न चूकें| अन्यथा रक्त-शर्करा स्तर अस्थिर हो सकता है|
- अपने पैरों कि विशेष देखभाल करें| प्रतिदिन पैरों को धोने के बाद क्रीम लगायें| पैर कि उंगलियों के बीच दरारें न पड़ने दे| पैरों में कोई भी समस्या होने तुरंत चिकित्सक से सलाह लें| अपने व्यायाम के अनुकूल जूतों का प्रयोग करें|
- व्यायाम करने से मांसपेशियों में थोरी बहुत पीड़ा होना स्वाभाविक है| किन्तु अचानक तीव्र पीड़ा होने कि स्थिति में व्यायाम न करें व चिकित्सक से संपर्क करें|
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